वक़्फ़ कानून 2025। मुसलमानों के पक्ष में या उनके खिलाफ़?

दूर एक गाँव में उस्मान चाचा रहते थे। बड़े ही नेक इंसान थे, लेकिन उनका कोई परिवार नहीं था। इसलिए उन्होंने सोचा कि उनके जाने के बाद उनकी जो थोड़ी बहुत जमीन है वो लोगों के काम आ जाए। उससे जो पैसा आए वो अनाथ और गरीब बच्चों की तालीम में इस्तेमाल किया जाए, और मस्जिदों की साफ़-सफाई, रख-रखाव इत्यादि में लगे।
लिहाज़ा, उन्होंने अपनी ज़मीन वक़्फ़ कर दी, यानि की अल्लाह के नाम पर दान कर दी। वक़्फ़नामा तैयार हो गया। राज्य वक़्फ़ बोर्ड में उस्मान चाचा की संपत्ति रिकार्ड हो गई और एक व्यक्ति मुतवल्ली (caretaker) नियुक्त कर दिया गया।


शुरू-शुरू में सब ठीक चला। उनकी दुकान किराये पर उठा दी गई। उससे जो भी किराया आता, उसे नेक कामों में लगा दिया जाता। फिर समय बीतता रहा, मुतवल्ली बदलते रहे। और फिर एक दिन कुछ लोग आए और उस्मान चाचा की जमीन पर कब्जा कर लिया और बोले कि चाचा के जाने के बाद इस जमीन पर उनकी मिल्कियत है। जब वक़्फ़ बोर्ड ने देखा तो कागजात नहीं मिले। शायद उनकी भी हेरा-फेरी हो गई थी। ये तो गलत हो गया। उस्मान चाचा जो चाहते थे, उनके जाने के बाद वैसा कुछ भी नहीं हो पा रहा था। इसी तरह मौजूदा वक़्फ़ संपत्तियों से जो भी आय अर्जित होती वो पूरी तरह से जनमानस के कामों में नहीं लगाई जा रही थी। जबकि मजे की बात ये है कि देश में सेना और रेलवे के बाद सबसे ज्यादा संपत्ति वक़्फ़ बोर्ड के ही पास है।


अब वक़्फ़ संशोधन 2025 राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी के बाद कानून बन गया है। इस कानून में एक मंशा तो साफ़ है कि वक़्फ़ संपत्तियों को पारदर्शी बनाना होगा। पहले हाई कोर्ट में किसी भी तरह के विवाद की अपील नहीं की जा सकती थी, लेकिन अब ऐसा हो सकता है। अब सारी संपत्तियों का डिजिटल रेजिस्ट्रैशन होगा। तो ये तो एक कदम है चीजों को पारदर्शी बनाने की दिशा में। अब भाजपा विरोधी पार्टियां और लोग तो विरोध करेंगे ही। ज्यादातर मुसलमान भाइयों को भी ये गलत ही लगेगा, क्योंकि उनका एक नजरिया है कि भाजपा मुस्लिम विरोधी पार्टी है। लेकिन, अगर वो इस नए कानून को ठीक से पढ़ें और समझें तो जरूर उनका ये नज़रिया बदल सकता है। कम से कम मेरी समझ तो यही कहती है कि वक़्फ़ का पूरा पैसा जिस पर गरीबों और आम लोगों का हक है वो उनको मिले। और ऐसा लगता है कि नए कानून से ऐसा होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
अब नए कानून के हिसाब से 2 गैर मुस्लिम लोग भी वक़्फ़ बोर्ड का हिस्सा बनेंगे, ये बात निश्चित ही मुसलमानों को नागवार लगेगी। लेकिन इसके पीछे की मंशा भी पारदर्शिता बढ़ाने वाली लगती है। बाकी भविष्य के गर्त में क्या छिपा है ये कौन जानता है।


अब सबसे बड़ी कमी पहले ये थी कि महिलायें वक़्फ़ से मिलने वाले लाभों से पूरी तरह से वंचित थीं। नए कानून के हिसाब से उनकी भी भागेदारी होगी। ये तो निश्चित तौर पर अच्छा है। ये किसी से नहीं छुपा कि सामाजिक उत्थान के लिए महिलाओं की भागेदारी बहुत जरूरी है। अब वक़्फ़ बोर्ड में भी महिलायें होंगी।

तमाम सारे विपक्ष के नेता सिर्फ राजनीति के लिए आम लोगों का भला कभी नहीं चाहते। विरोध में वो इस कदर अंधे होते हैं कि उनके ही समर्थकों का कुछ भला हो रहा हो तो उनसे बर्दाश्त नहीं होता। हाँ, वो सारे लोग भी बौखलाए हुए हैं जो वक़्फ़ संपत्तियों से निजी लाभ लेते थे। अब वो करना आसान नहीं होगा। ऐसी मंशा रखने वालों के लिए तो दिक्कत की बात है। बाकी नीचे दिए पॉइंट्स आप खुद समझें और तय करें कि क्या नया कानून वाकई गलत है?

  1. वक़्फ़ केवल वही कर सकता है जो मुसलमान हो और कम से कम पाँच साल से इस्लाम फॉलो कर रहा हो।
  2. वक़्फ़ संपत्तियों का डिजिटल रेजिस्ट्रेशन अनिवार्य होगा।
  3. विधवा, तलाकशुदा और अनाथ महिलाओं को सहायता देने का विशेष प्रावधान
  4. वक़्फ़ बोर्ड में 2 गैर मुस्लिम सदस्य भी होंगे
  5. अगर किसी की निजी संपत्ति को वक़्फ़ घोषित कर दिया गया हो तो वो अपना दावा कर सकता है।
  6. बिना दस्तावेज वाली संपत्तियों की जांच की जाएगी
  7. अब वक़्फ़ ट्रिब्यूनल के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है
  8. राजस्व रिकार्ड में दर्ज होगा
  9. मुतवल्ली की पूरी जवाबदही होगी
  10. यूजर के आधार पर वक़्फ़ की प्रथा खत्म

अब आपका क्या सोचना है, आप लोग कमेंट्स में बता सकते हैं।

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